सोमवार, 20 सितंबर 2010

गीलोय [अमृता] के औषधीय गुण







वैज्ञानिक नाम - Tinospora cordifolia (willd) Hook.f.&Thoms.

गिलोय भारतवर्ष में प्राय:सभी जगह पायी जाती है !किसी भी पेड के उपर सहारा ले कर गिलोय की बेल चढ जाती है और जैसा कि इसके नाम से ही इसका परिचय मिलता है अमृता अर्थात कभी ना सूखने वाली, यह जिस भी बृक्ष पर चढती है उसके गुणों को अपने में समाहित कर लेती है ! अत: नीम के बृक्ष पर चढी हुई गिलोय की बेल अच्छी मानी जाती है ! गिलोय का तना मोटा होता है व पत्तियां पान के पत्तों के आकार की होती है ! ग्रीष्म ऋतु में इसमें छोटे - छोटे लाल रंग के फल भी लगते हैं ! अपने घर में गमले में इसे आसनी से उगा सकते हैं ! इसकी डन्डियां सुखाकर पीस लें या सूखी डन्डियों को पानी में भिगा कर व कूट कर भी गिलोय का रस निकाल सकते हैं ! इसके अद्भुत परिणामों से आपका परिचय करा रही हूं ! --




1.पूरे विश्व में स्वाइन फ़्लू नामक रोग अपनी जडें फैला चुका है ,गिलोय में इस रोग के निवारण की अद्भुत क्षमता है ! गिलोय की लगभग एक फ़िट लम्बी डन्डी को लेकर उसमें कुछ तुलसी के पत्ते मिलाकर कूट लें, इसका रस नित्य पीयें ! स्वाइन फ़्लू पास नही फटकेगा !और यदि स्वाइन फ्लू हो जाये तो इसका रस तुलसी के पत्ते मिलाकर दिन में कम से कम 5 - 6 बार दें !

2.शरीर मे ब्लड सैल्स कम हो जाने पर गिलोय का रस रोज पिलाये, बडी तीव्रता से हिमोग्लोबिन बढेगा !

3.बुखार आ जाने पर या टाइफ़ाइड हो जाने पर गिलोय की एक डन्डी [लगभग एक फ़िट लम्बी ] 7 तुलसी के पत्ते, 5 काली मिर्च व एक टुकडा अदरक ले कर कूट ले व दो ग्लास पानी डालकर उबाल लें, जब एक ग्लास के लगभग रह जाये तो कुछ ठंडा कर पी लें ,दिन मे लगभग तीन बार पीयें ,बुखार उतर जायेगा!वह भी बिना कमजोरी व साइड इफ़ैक्ट के !

4.गिलोय के रस में त्रिफ़ला व पीपल का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर प्रात: व सायं दोनों टाइम लगातार लेने
से नेत्र ज्योति बढती है !

5.शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये भी गिलोय का प्रयोग किया जा सकता है, यह शरीर के त्रिदोष [ वात, पित्त,व कफ़ ] को दूर करती है तथा रोगों से शरीर को बचाती है !

6.गिलोय के रस से पेट की एसिडिटी कम होती है तथा हार्ट को बल मिलता है ! यह शरीर में इंसुलिन की उत्पत्ति व रक्त में उसकी घुलनशीलता को बढाता है !जिससे रक्त शर्करा घटती है ! अत: गिलोय शरीर में ब्लड प्रेशर व शुगर दोनों को कन्ट्रोल करती है !

7.डैगू बुखार हो जाने पर मरीज को दिन में कई बार गिलोय का रस पिलाये तीव्रता से लाभ होगा !

8.क्षय रोग उत्पन्न करने वाले माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबर -कुलोसिस जीवाणु की वृद्धि को गिलोय सफलता पूर्वक रोकती है ! शरीर के जिस भाग में भी ये जीवाणु शान्त पडे रहते है, गिलोय वहां पहुंच कर उनका नाश करती है ! अत: क्षय रोगी इसे रोग की गम्भीरता के अनुसार दिन में दो या तीन ले सकते हैं !

9.गिलोय आतों से सम्बन्धित रोगों को भी दूर करने में मदद करती है ! ई कोलाइ नामक रोगाणु को जो आतों के साथ-साथ पूरे शरीर को प्रभावित करता है उसे गिलोय जड से उखाड फैकती है !

10.गिलोय के रस को पानी में घिस कर व गुनगुना करके कान में डालने से कान का मैल निकल जाता है !

11.यदि हिचकी बन्द न हो रही हो तो गिलोय व सोंठ के चूर्ण को सूंघें या गिलोय व सोंठ का रस दूध में मिलाकर पीयें !

12.दूध के साथ गिलोय का चूर्ण 2 से 5 ग्राम तक दिन में दो या तीन बार लेने से गठिया रोग दूर हो जाता है ! कम से कम दो महीना लगातार लें !
अच्छे आयुर्वैदिक संस्थानों या योग गुरु बाबा रामदेव जी के पतन्जलि चिकित्सालयों मे गिलोय का चूर्ण या गिलोय घनवटी [पतन्जलि चिकित्सालय] मिल जाती है जिसका उपयोग सभी आसानी से कर सकते हैं !

गुरुवार, 3 जून 2010

नीबू के औषधीय गुण

नीबू का सेवन हर मौसम में किया जा सकता है ! और सभी नीबू से परिचित भी हैं, यह विटामिन सी का महत्वपूर्ण स्रोत है ! इसकी सबसे बडी विशेषता यह है कि यह हर अवस्था में अम्लीय ही रहता है व अम्लीय रहते हुये भी पित्त शामक है ! नीबू की कई जातियां पायी जाती हैं जैसे -- जमीरी नीबू , बिजौरी नीबू , मीठा नीबू , कागजी नीबू आदि ! औषधि के लिये हमेशा कागजी नीबू का उपयोग करना चाहिये !
नीबू के कुछ औषधीय गुण निम्न हैं --


  1. शक्ति वर्धक -----उबलते हुये एक गिलास पानी में एक नीबू निचोड कर नित्य पीने से शरीर में स्फूर्ती आती है, नेत्र ज्योति बढती है, मानसिक दुर्बलता दूर होती है, व सिर दर्द दूर होता है ! अधिक काम करने से होने से थकान दूर होती है ! चाहें तो नीबू में शहद मिलाकर भी पी सकते हैं पर अधिक मीठा व अधिक नमक दोनों ही स्वास्थ के लिये हानिकारक है ! पानी मे बार - बार नीबू का रस मिलाकर पीने से शरीर के वर्ज्य पदार्थ बाहर निकल जाते हैं ! पथरी होने पर नीबू का सेवन न करें !
  2. यदि पेट में कीडे हो गये हों तो नीबू के बीजों को पीस कर चूर्ण बनालें और पानी के साथ ले लें ! मात्रा -- बडों के लिये एक से तीन ग्राम तथा बच्चों के लिये एक ग्राम ! सुबह खाली पेट नीबू पानी भी पीयें !
  3. यदि नाखून ना बढते हों तो गरम पानी में नीबू निचोड कर उसमें ५ मिनट तक नाखूनों को डुबोयें, फिर तुरन्त ही हाथ ठन्डे पानी में डाल लें ऐसा कुछ दिन लगातार करें इससे नाखून बढने लगेंगे ! नाखूनों पर नीबू का रस लगाने से वह मजबूत व सुन्दर बने रहते हैं !
  4. दस्त हो जाने पर आधा गिलास पानी में आधा नीबू निचोड कर दिन में तीन या चार बार पीयें या एक या नीबू का रस निचोड कर उसमें दो या चार चम्मच चीनी मिलाकर आधा - आधा चम्मच दिन में दो-दो घन्टे बाद ले लें , दस्त रूक जायेंगे ! यदि खूनी बवासीर हो या खूनी दस्त हो रहे हों तो एक कप गरम दूध में आधा नीबू निचोड कर तुरन्त पी जायें, रक्त स्राव रुक जायेगा ! इस प्रयोग को दो बार से अधिक न करें !
  5. नीबू के रस को चेहरे पर मलने से कील मुंहासे, झाइयां आदि दूर हो जाते हैं !
  6. चेहरे की झुर्रियों को कम करने के लिये व चेहरे का रंग साफ़ करने के लिये नीबू के रस में शहद बराबर मात्रा में मिलाकर रोज चेहरे पर लगायें व १५ मिनट बाद धो दें ऎसा कुछ समय लगातार करें!
  7. मलाई में नीबू मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा मुलायम व दाग धब्बे रहित हो जाता है!
  8. नीबू व नारियल या शुद्ध सरसों का तेल मिलाकर बालों की जडों में रात को मालिश करें व सुबह धो दें! ऐसा सप्ताह में दो बार करें बाल गिरने बंद हो जायेंगे!
  9. सिर में यदि कहीं पर बाल गिर गये हों तो उस स्थान पर नित्य सिर धोने से आधा घंटा पहले नीबू मलें! बाल उग आऎंगे! ऎसा एक या दो महीने तक लगातार करें!
  10. यदि बाल तेलीय हैं तो पानी में एक नीबू निचोड कर सिर धोयें बाल चमकीले व सूखे रहेंगे!
  11. सुबह-सुबह खाली पेट २०० ग्राम गुनगुने जल में दो चम्मच नीबू का रस व एक चम्मच शहद डालकर पीने से मोटापा दूर होता है!
  12. यूरिक एसिड शरीर में बढ गया हो तो सुबह खाली पेट एक गिलास गरम पानी में नीबू व आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर पियें! रोग अधिक बडा हुआ होने पर दिन में दो बार भी इसे ले सकते हैं लाभ होगा!
  13. नीबू में ह्र्दय की कमजोरी दूर करने के विशेष गुण हैं! इसके निरंतर प्रयोग से रक्त वाहिनियों में लचक व कोमलता आ जाती है और इनकी कठोरता दूर हो जाती है! कैसा भी ब्लड प्रैशर हो नीबू का रस पानी में मिलाकर दिन में कई बार पीने से शीघ्र लाभ होगा!
  14. दमा का दौरा पडने पर गरम पानी में नीबू का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है दमा के रोगों को नित्य प्रात: एक गिलास गरम पानी में एक नीबू दो चम्मच शहद व एक चम्मच अदरक का रस लगातार पीते रहने से बहुत लाभ होता है! यह ह्रदय रोग, ब्लडप्रेशर पाचन संस्थान के रोग व उत्तम स्वास्थय के लिये लाभदायक है!
  15. धूप से त्वचा झुलस जाने पर १० ग्राम नीबू के रस में १० ग्राम मूली का रस व १० ग्राम दही मिलाकर लगायें, फिर २० मिनट बाद धो दें !
  16. यदि मच्छर के काटने पर दर्द होता हो तो नीबू का रस लगायें , नीबू का रस नमक के साथ मिलाकर मलने से मकडी, पिस्सू बर्र, व मधुमक्खी के काटे स्थान पर आराम होता है !

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

उत्तम स्वास्थ का आधार "प्राणायाम"

स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है! यदि शरीर रोग ग्रस्त है तो सुख शान्ति और आनन्द वैभव आदि कहां ? भले ही धन सम्पदा, कीर्ति सब कुछ प्राप्त है पर यदि तन स्वस्थ नही है तो यह मानव शरीर बोझ सा ही प्रतीत होता है ! हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों व सिद्ध योगियों ने यौगिक प्रक्रिया का आविष्कार किया है ! योग प्रक्रियाओं के अन्तर्गत प्राणायाम का एक अति विशिष्ट महत्व है ! यूं कह लीजिये कि प्राणायाम आत्म चिकित्सा व आत्म औषधि है ! प्राणायाम द्वारा हम शक्ति का संचय व विकारों का क्षय करते हैं !
श्वास प्रश्वास हमारे जीवन का आधार है !श्वास प्रश्वास की गति को लय बद्ध करना ही प्राणायाम है ! प्राणायाम करना केवल सांस लेना व छोडना ही नही होता, अपितु वायु के साथ-साथ हम वायु मन्डल में विद्यमान प्राण शक्ति व जीवनी शक्ति भी ग्रहण करते हैं ! यह जीवनी शक्ति सर्वत्र व सदा विद्यमान रहती है, जिसे हम ईश्वर, खुदा, गौड आदि अपनी आस्था के अनुरूप कुछ भी नाम दे देते हैं ! उस एक परम शक्ति से जुडना व जुडे रहने का अभ्यास ही प्रायाणाम है !
प्राणायाम को व्यायाम की तरह देखना तथा एक विशेष वर्ग की पूजा पाठ से जोडकर देखना अज्ञानता है ! अज्ञान से ऊपर उठकर हमें इसे एक सम्पूर्ण विज्ञान की तरह देखना चाहिये ! योग की पौणाणिक मान्यता है कि इससे अष्ट चक्र जाग्रत हो जाते हैं ! प्राचीन सांस्कृतिक इन शब्दों का यदि मूल्यांकन करते हैं तो ज्ञात होता है कि मूलाधार, स्वाधिष्टान, मणिपूर, ह्रदय, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञाचक्र व सहस्त्रार चक्र आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के आठों सिस्टमों से सम्बद्ध हैं !

मूलाधार चक्र Reproductory system

स्वाधिष्ठान चक्र Excretory system

मणिपूर चक्र digestive system

ह्रदय चक्र Skeleal system

अनाहत चक्र Circulatory system


विशुद्धि चक्र Respiratory system

आज्ञा चक्र Nervouse system

सहस्त्रार चक्र Endocrinal system


एक -एक सिस्टम या चक्र के असन्तुलन से शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है ! योग एलोपैथी की तरह एक "पिजन होल ट्रीटमैन्ट " न होकर आरोग्य की एक सम्पूर्ण विधा है! आपात कालीन चिकित्सा शल्य चिकित्सा को छोड कर शेष चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में योग एक श्रेष्टतम चिकित्सा विधा है ! योग के साथ-साथ कुछ जटिल रोगों में आयुर्वेद का भी प्रयोग अधिक प्रभावी हो जाता है ! अत: प्रतिदिन २४ घंटे में से आधे धंटे से लेकर ( अपनी सुविधा व रोग की गम्भीरता के अनुसार ) डेढ घंटे तक का समय योग व प्राणायाम के लिये निकाल कर हम स्वस्थ, सुन्दर व निरोगी काया के अधिपति हो सकते हैं !
प्राणायाम का समय ----
बच्चे तीन वर्ष की आयु से लेकर व वृद्ध व्यक्ति अन्तिम सांस तक प्राणायाम कर सकते हैं ! एक स्वस्थ व्यक्ति को २ से ५ मिनट तक भस्त्रिका प्राणायाम व १०-१० मिनट तक कपालभाति व अनुलोम -विलोम प्राणायाम आजीवन स्वस्थ बने रहने के लिये अवश्य करना चाहिये !
प्राणायाम की महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं-----
यद्यपि शास्त्रों मे प्राणायाम की विभिन्न विधियां हैं, और प्रत्येक प्राणायाम का अपना विशेष महत्व है ! परन्तु प्रतिदिन हर प्राणायाम का अभ्यास नहीं किया जा सकता अत: पतन्जलि योग पीठ हरिद्वार के संथापक योग ॠषि स्वामी रामदेव जी के द्वारा कुछ चुनींदा प्राणायामों का अभ्यास कराया जाता है, जिनसे करोडों लोगों को अप्रत्याशित रूप से लाभ हुआ है ! जो निम्न हैं -
१- भस्त्रिका प्राणायाम--
इस प्राणायाम का समय २ मिनट से लेकर ५ मिनट तक है ! जो दमा, अस्थमा, एलर्जी आदि किसी रोग विशेष से पीडित हैं वह इस प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन १० मिनट तक करें !
विधि --
सर्व प्रथम किसी भी प्राणायाम को करने के लिये, जहां भी बैठकर प्राणायाम करना है उस स्थान पर आसन बिछा लें जिससे कि अर्थिग न हो पाये ! फिर सुखासन,(पालथी मारकर) सिद्धासन, या पद्मासन किसी भी आसन विशेष में , जिसमें बैठकर सुविधा हो प्रत्येक प्राणायाम के लिये बैठें !
भस्त्रिका प्राणायाम में लम्बा और गहरा श्वास लें, और फिर गहरा श्वास छोडें ! श्वास भरते समय ध्यान करें कि इस ब्रह्मांड में जो भी दिव्य ,शुभ, और पवित्र है वह श्वासों के साथ मुझमें प्रविष्ठ हो रहा है ! श्वास छोडते समय मन में भाव रखें कि हर बाहर छूटती श्वास के साथ हम अपने शरीर के सभी विकारों को बाहर छोड रहे हैं !
२- कपालभाति प्राणायाम --
इस प्राणायाम को एक बार में लगातार कम से कम ५ मिनट तक अवश्य करना चाहिये ! यदि विश्राम लेना हो तो ५ मिनट बाद ही लें अधिक फायदा होगा ! स्वस्थ व्यक्ति प्रति-दिन १० से १५ मिनट तक कपालभाति प्राणायाम कर सकते हैं ! जो गम्भीर रोगी हैं या किसी रोग विशेष से पीडित हैं वह इसे आधा-आधा घन्टा सुबह व शाम दोनों टाइम कर सकते हैं !
विधि--
नाभि के पास से पेट से गहरा धक्का लगाकर श्वासों को बाहर छोडेंगे, पूरा ध्यान श्वासों को बाहर छोडने में ही केन्द्रित करेंगे ! श्वास भरने का प्रयत्न नहीं करेंगे अपितु सहज रूप से जो श्वास अन्दर जाता है वही काफी है! इस तरह नाभि के पास से १ सेकेन्ड मे एक स्ट्रोक लगायेगे ! मन ही मन ओम शब्द का जाप या अपने इष्ट का ध्यान करेंगे ! कपालभाति प्राणायाम को करने से कैंसर, हिपैटाइटिस, सोराइसिस, इम्फर्टिलिटि, अत्यधिक मोटापा व पेट सम्बन्धी सभी रोग या शरीर में कोई गांठ हो गई हो, दूर हो जाते हैं !
बाह्य प्राणायाम --
प्रतिदिन स्वस्थ व्यक्ति को ३ से ५ बार तक इस प्राणायाम को करना चाहिये! पाइल्स, फिशर, फ्रिस्टूला, बहुमूत्र व यूट्रस सम्बन्धी रोग विशेष से पीडित व्यक्ति बाह्य प्राणायाम को ११ बार तक भी कर सकते हैं !
विधि --
किसी भी आसन विशेष में बैठकरश्वास को एक बार में ही यथा - शक्ति बाहर निकाल लें ,इसके पश्चात मूल बन्ध, उड्डियान बन्ध, व जालन्दर बन्ध लगाकर श्वास को यथा -शक्ति बाहर ही रोक कर ही रखें व फिर धीरे -ध्रीरे बन्धों को हटाकर श्वास लेलें !
४- उज्जायी प्राणायाम --
इस प्राणायाम में गले को सिकोडकर श्वास अन्दर भरते हैं जैसे खर्राटे लेते समय आवाज होती है, वैसी ही ध्वनि पूरक करते समय गले से होती है ! वायु का धर्षण नाक में न होकर गले में होना चाहिये ! इसके पश्चात ठोडी को कंठ कूप (गले) से लगाकर कुछ देर श्वास को रोकेंगे (यथा-शक्ति) इसके बाद दांई नासिका को बन्द कर बांई नासिका से श्वास को बाहर छोड देते हैं !
उज्जायी प्राणायाम को करने से थाइराइड, खांसी, टोंसिल व गले सम्बन्धी सभी रोग दूर होते हैं ! इस प्राणायाम को ४-५ बार तक कर सकते हैं !
५-अनुलोम विलोम प्राणायाम --
इस प्राणायाम को भी कम से कम एक बार में ५ मिनट तक लगातार अवश्य करना चाहिये, यदि विश्राम करना हो तो ५ मिनट पश्चात ही करें! स्वस्थ व्यक्ति १० मिनट प्रतिदिन व किसी रोग विशेष से पीडित या गम्भीर रोगी आधा -आधा घंटा सुबह व शाम दोनों समय कर सकते हैं ! अनुलोम विलोम प्राणायाम को करने से हमारे शरीर में स्थित बहत्तर करोड बहत्तर लाख दस हजार दो सौ दस नस नाडियां परिशुद्ध हो जाती हैं ! फलस्वरूप सम्पूर्ण शरीर आरोग्य को प्राप्त होता है ! कपालभाति प्राणायाम के साथ अनुलोम विलोम प्राणायाम को आधा-आधा घंटा सुबह व शाम को दोनों समय करने से कैंसर जैसा गम्भीर रोग भी दूर होता देखा गया है ! दोनों प्राणायामो को करने से असाध्य रोग आश्चर्य जनक रूप से ठीक होते हैं !
अर्थराइटिस, गठिया, कम्पवात, सोराइसिस, अस्थमा, पुराना नजला, ह्रदय सम्बन्धी सभी रोग व डिप्रैशन आदि अनेक रोग अनुलोम विलोम से ठीक होते हैं !
विधि --
सर्वप्रथम किसी भी आसन विशेष में बैठकर दाई नासिका को बन्द कर बांई नासिका से श्वास लें व दांई से छोड दें, फिर दांई से ही श्वास लेकर बांई से छोड दें, छोडने के पश्चात फिर बांई से ही पुन: श्वास लें ! इस प्रकार यह क्रम चलता रहेगा ! लगभग ढाई सैकेंड का समय श्वास को लेने में लगायेंगे व ढाई सैकेंड का ही समय श्वास को छोडने मे लगायेंगे, लम्बा व गहरा श्वास लेते व छोडते समय मन ही मन ओम का या अपने ईष्ट का ध्यान करेंगे तथा मन में सकारात्मक भाव रखेंगे कि हर श्वास प्र:श्वास के साथ हम पूर्ण आरोग्य को प्राप्त हो रहे हैं !
भ्रामरी प्राणायाम --
इस प्राणायाम को स्वस्थ व्यक्ति को तीन से पांच बार प्रतिदिन करना चाहिये ! जो डिप्रैशन, उच्च रक्तचाप या ह्रदय रोग आदि से पीडित हैं ,वह इसे ११ बार तक कर सकते हैं!
विधि--
किसी भी एक आसन विशेष में बैठकर तर्जनी अंगुली माथे पर लगायें, अंगूठे से कानों को बन्द करें, शेष तीन अंगुलिओं से आंखों को बन्द करेंगे ! फिर लम्बा व गहरा श्वास लें, श्वास को छोडते हुये मुंह बन्द करके ओम की ध्वनि ( भोंरे की तरह गुंजार करते हुये ) करेंगे ! पुन: इसी प्रकार इस प्रक्रिया को दोहरायेंगे !
उदगीत प्राणायाम --
सर्वप्रथम किसी भी आसन विशेष में बैठें, तर्जनी अंगुली को अंगूठे से लगाकर ज्ञान मुद्रा में बैठकर लम्बा व गहरा श्वास लें, फिर श्वास को छोडते हुये ओम का उच्चारण करेंगे ! यही प्रक्रिया पुन: दोहरायेंगे ! इस प्राणायाम को तीन बार से लेकर लम्बे समय तक कर सकते हैं ! भ्रामरी व उदगीत दोनों प्राणायाम सौम्य प्राणायाम हैं, ध्यान की गहराई में उतरने के इच्छुक लोग लम्बा अभ्यास कर सकते है ! जो कि नुकसान रहित है !
इस प्राणायाम को करने से मन की चंचलता दूर होती है व मानसिक तनाव उत्तेजना, ह्रदय रोग आदि में लाभप्रद हैं !
प्रणव प्राणायाम --
सभी प्राणायामो को करने के बाद श्वास - प्रश्वास पर अपने मन को टिकाकर मन ही मन ओम का घ्यान करें, या अपने ईष्ट का ध्यान करें ! कुछ समय तक साक्षी भावपूर्वक ओम का जप करने से ध्यान स्वत: होने लगता है ! प्रणव के साथ -साथ गायत्री महामंत्र का भी जाप किया जा सकता है ! इस प्रकार साधक ध्यान करते -करते दिव्य समाधि व दिव्य आनन्द को प्राप्त कर सकता है ! जिन्हे नींद न आती हो उन्हें सोते समय भी लेटे - लेटे इसी प्रकार ध्यान करते हुये सोना चाहिये ! ऐसा करने से निद्रा भी योग मयी हो जाती है व दु:स्वप्न से भी छुटकारा मिलता है तथा निद्रा शीघ्र व प्रगाढ आयेगी ! तीन से पांच मिनट तक प्रत्येक मनुष्य को ध्यान अवश्य करना चाहिये जिससे साधक सैल्फ हीलिंग व सैल्फ रियलाइजेशन की स्थिति को प्राप्त कर लेता है ! उसके चारों ओर एक दिव्य आभा मंडल सुरक्षा कवच की भांति तैयार हो जाता है, फलस्वरूप हमारा शरीर अनेकों व्याधियों व विकारों से बचा रहता है !
इस प्रकार आठों प्रणायामों की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, जो प्रत्येक मनुष्य के उत्तम स्वस्थ के लिये आवश्यक है ! यदि समय की कमी हो तो ऐसे मे कपालभाति व अनुलोम विलोम प्राणयाम अवश्य करें ! प्रारम्भ में किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही प्राणायाम करें या टी वी पर आस्था चैनल, दूरदर्शन, इन्डिया टी वी आदि पर भी सुबह योग का प्रोग्राम आता है ! कुछ समय उसे देखते हुये अभ्यास कर सकते हैं ! आप स्वयं प्राणायाम करते हुये अपने आस -पास के लोगों को भी प्राणायाम करने के लिये प्रेरित करें ! इस प्रकार हम सभी के सहयोग से एक स्वस्थ समाज व देश का र्निमाण हो सकेगा, तभी ’सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया ’ का भाव सार्थक हो पायेगा !

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

अजवाइन के औषधीय प्रयोग --------







औषधि के रूप में अजवाइन का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है! पाचक औषधि के रूप में इसका अन्यत्र विकल्प दुर्लभ है !

अजवान में चिरायते का कटु व पौष्टिक गुण, हींग का वायु नाशक गुण व काली मिर्च का अग्नि दीपन गुण है! इसी कारण कहा जाता है----"
एका यवानी शतमअन्नपातिका " अर्थात- एक अकेली अजवाइन ही सैकडों प्रकार के अन्न को पचाने में सहायक है !इसके कुछ औषधीय गुण निम्न हैं --

१- दो सौ ग्राम के आसपास मात्रा में अजवाइन को तवे पर गरम करके मलमल के कपडे में बांधकर पोटली बना लें, इसे गरम-गरम सूंघने से जुकाम कम हो जाता है ! या अजवाइन को महीन कर पीस करके दो से पांच ग्राम की मात्रा तक सूंघने से जुकाम, सिर दर्द आदि में लाभ होता है !

२- अजवाइन के चूर्ण की २ से ३ ग्राम मात्रा को गरम पानी या गरम दूध के साथ दिन में दो या तीन बार लेने से जुकाम, सिर दर्द, नजला ,मस्तक शूल व मस्तक कृमि में लाभ होता है !

३- खासी होने पर ५ ग्राम अजवाइन को २५० ग्राम पानी में पकायें आधा शेष रहने पर सैधा नमक मिलाकर रत्रि को सोने से पहले पी लें, लाभ होगा !
४- यदि दूध ठीक से न पचता हो तो दूध पीकर थोडी सी अजवाइन खा लेनी चाहिये ! यदि गेहूं का आटा न पचता हो तो उसमें थोडी सा अजवाइन का चूर्ण मिला लेना चाहिये !

५- शरीर में कहीं भी दर्द होने पर अजवाइन को पानी में पीस कर लेप करें, और फिर उसे धीरे-धीरे उपर से सेक दें, दर्द कम होगा !

६-स्वच्छ अजवाइन के महीन चूर्ण को ३ ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार छाछ के साथ सेवन करने से पेट के कीडे समाप्त हो जाते हैं !

७- पेट दर्द होने पर ३ ग्राम अजवाइन चूर्ण गरम पानी से प्रात: व सायं दोनों टाइम लें !

८- ३ ग्राम अजवाइन मे आधा ग्राम काला नमक मिलाकर गरम पानी के साथ दिन में दो या तीन बार लेने से वायु का गोला दूर होता है !

९- भोजन के बाद यदि छाती में जलन होती हो तो एक ग्राम अजवाइन व एक गिरी बादाम की खूब चबाकर खायें !

१०- प्रसूता स्त्रियों को अजवाइन के लड्डू व भोजन के बाद दो ग्राम अजवाइन की फंकी देनी चाहिये, इससे भूख अच्छी लगती है, आतों के कीडे मरते हैं व रोगों से बचाव होता है !

११- २ ग्राम अजवाइन को २ ग्राम गुड के साथ कूट कर ४ गोली बना लें व तीन -तीन घंटे के बाद पानी से ले लें ,इससे बहुमूत्र रोग दूर होता है !

१२- यदि बच्चों के पैर में कांटा चुभ जाये तो कांटा चुभने के स्थान पर पिघले हुये गुड मे १० ग्राम पिसी हुई अजवाइन मिलाकर थोडा गरम कर बांध देने से कांटा अपने आप निकल जायेगा !

सोमवार, 22 मार्च 2010

तुलसी के औषधीय प्रयोग----





लेटिन नाम- ओसिमम सैन्टकम
१ - तुलसी के पांच पत्ते व पांच काली मिर्च पीस लें; इसे पानी में मिलाकर प्रात: खाली पेट २१ दिन तक पीयें यह मस्तिष्क की गर्मी को दूर करने की शक्‍ति देता है !

२-तुलसी के पांच पत्ते रोज पानी के साथ निगलने से बल; तेज व स्मरण शक्‍ति बढती है !

३-तुलसी के पत्तो को पीस कर नमक मिलाकर उसका रस नाक में डालने से बेहोशी में लाभ होता है !

४-बुखार खांसी व श्वास सम्बन्धी रोगों में तुलसी की पत्तियो का रस ३ ग्राम;अदरक का रस ३ ग्राम व शहद ५ ग्राम मिलाकर दिन में तीनों टाइम चाटें लाभ होगा !

५-तुलसी का रस नाक में टपकाने से पुराना सिर दर्द व सिर के अन्य रोग दूर होते हैं!

६-तुलसी के पत्तों का रस नित्य चेहरे पर लगाने से चेहरे के दाग धब्बे व झाइयां दूर होते हैं !

७-काली मिर्च व तुलसी के पत्तों की गोलियां बनाकर दांत के बीच में रखने से दांत में रखने से दांत दर्द दूर होता है !

८-सात पत्ते तुलसी के व पांच लोंग कूटकर एक गिलास पानी में पकायें,जब आधा शेष रह जाये तब थोडा सा सैधा नमक डालाकर गरम-गरम पी जायें !यह काढा पीकर कुछ समय के लिये वस्त्र ओढ्कर पसीना ले लें इससे बुखार तुरन्त उतर जायेगा तथा सर्दी जुकाम व खांसी भी ठीक हो जाती है! इस काढॆ को दिन में दो या तीन बार ले सकते हैं !

९-भोजन के बाद तुलसी के सात पत्ते पानी में पीस कर पीने से अजीर्ण (भोजन न पचना)दूर होता है! नित्य तुलसी के सात पत्ते लेने से डाइजेसन सिस्टम ठीक रहता है !

१०- पांच लोंग भून कर तुलसी के पत्तों के साथ चबाने से सब तरह की खांसी में लाभ होता है !केवल तुलसी का काढा पीने से भी खांसी ठीक होती है!

११- तुलसी की सूखी पत्तियां व मिश्री समान मात्रा में पीस लें, लगभग चार-चार ग्राम दिन में तीन बार लें !खांसी व फेफडों की घरघराहट दूर हो जायेगी !

१२-तीन ग्राम तुलसी का रस व ६ग्राम मिश्री तथा ३काली मिर्च मिलाकर कुछ दिन लगातर लेने से छाती की जकडन ,पुराना बुखार व खांसी में लाभ होता है !

१३-छोटे बच्चों को खंसी व जुकाम हो जाने पर तुलसी के पत्तो का रस शहद में मिलाकर दिन में तीन या चार बार चटायें !

१४-तुलसी के पत्तों का रस १२ ग्राम व शहद ६ ग्राम मिलाकर पीने से हिचकी बन्द हो जाती है !

१५- तुलसी की पत्तों को शक्कर के साथ मिलाकर पीने से पेचिश दूर होती है !

मंगलवार, 2 मार्च 2010

महामॄत्युंजय मंत्र

ओम त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं, उर्वारुकमिव बन्ध्नानमॄत्योर्मुक्षीय मामॄतात !

इस एक महामॄत्युंजय मंत्र में हमारे पूरे शरीर को आरोग्य देने चमत्करिक अक्षर छुपे हुये हैं !महामृत्युंजय मंत्र मे ३३अक्षर हैं, जो महर्षि वसिष्ट के अनुसार ३३ दिव्य शक्तियों के समान हैं ! वैज्ञानिक शोध के अनुसार पाया गया है कि इसके मंत्र जाप में रोग निवारण की अपार शक्ति निहित है! मंत्र जप साधना एक ऐसी पद्यति है, जिसके कोई साइड इफैक्ट नहीं हैं !यह योग के क्षेत्र में सबसे सरल और प्रभावपूर्ण साधना है!

महामृत्युंजय मंत्र की संरचना में विभिन्न शक्ति बीजों को पिरोया गया है, इसके मंत्र जप में जिव्हा के साथ -साथ कंठ, तालु, , दांत आदि मुंह के सभी अंग सहायक होते हैं! महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करने से मुंह के जिन-जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाडी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों में फैल जाते हैं! इस फैलाव क्षेत्र में हमारे शरीर में फैली अनेक ग्रंथियां होती हैं, जिन पर उच्चारण का दबाब पडता है ,जिससे शरीर के आठों सिस्टम बैलेंस हो जाते हैं!

हमारे शरीर में स्थित शक्तियों का जाग्रत व सबल रहना ही जीवन है, तथा उनका निर्बल व सुप्त रहना ही मृत्यु है ! महामृत्युंजय मंत्र के जाप से मंत्र में आये हुये वर्ण शरीर में स्थित विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करते हैं ! अत: मंत्र जाप से जाग्रत होकर विभिन्न शक्तियां तन व मन को सबल बनाती हैं !

एकाग्रता, दृढ विश्वास व दिव्य पवित्र भाव से की गयी जप साधना सदैव लाभकारी होती है !

स्वप्न(सपना)

हम स्वप्न देखते हैं;परन्तु उनमें छुपे अर्थो को हम खोल नही पाते यदि यह समझ में आ जाये तो स्वप्नो का संसार और भी अद्भुत हो जायेगा ! स्वप्न संसार बडा ही विचित्र व रहस्यमय विजान है;यह एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसे जितना सुलझाते हैं उलझती ही चली जाती है !आये दिन स्वप्न का मर्म समझ में आ जाने पर कुछ विशिष्ट साधनाओं द्वारा अशुभ स्वप्नफल का निराकरण किया जा सकता है !वस्तुत: यह हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है; परन्तु इससे हम अनजान हैं! ऋषियो ने स्वप्न पर व्यापक अनुसंधान किया है जिसके अनुसार स्वप्न तीन प्रकार के होते हैं-
१-दैनिक कार्यो की सूचना देने वाले;
२-शुभ फलदायी स्वप्न,
३-अशुभ फलदायी स्वप्न,
रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात नींद लगने पर तुरन्त स्वप्न देख्नने पर उसकी फल अवधि एक वर्ष होती है!
दूसरे प्रहर में देखा फल ६ महीने में फलित होता है!
उषाकाल में देखा स्वप्न तुरन्त फल देने वाला होता है!
शुभ एवं अशुभ स्वप्नों के कुछ फल जो आचार्यों द्वारा बताये गये हैं वह निम्न हैं---

शुभ स्वप्न--

राज गुरु,ब्राह्मण व देव दर्शन,आभूषण युक्त स्त्री या सफेद वस्त्र युक्त स्त्री देखना !
श्वेत कमल,तालब, नदी,सफेद वस्तु (छाछ,रुइ, अस्थि,व नमक को छोडकर!
रक्त व पुष्प दर्शन, सफेद सर्प का काटना,गाय का ताजा दूध पीना, वीणा बजाना,
स्व मरण, स्व शरीर का छेदन, विजय प्राप्त होना,पान व कपूर का मिलना,
पर्वत पर चढना, समुंद्र में व नदी में तैरना,देव पूजा ,देव ध्वनि सुनना !
सूर्य,चन्द्र व इन्द्र-धनुष दर्शन आदि !

अशुभ स्वप्न----
लाल वस्त्र पहनना, नाच गाने से युक्त विवाहोत्सव देखना !
अपने शरीर में तेल मलना,सूखी नदी व सूखा पेड देखना, पित्र कार्य करना !
गधे मे बैठना,नदी मै डूबना या बहना,दीपक टिमटिमाता दिखायी देना,माला या हार टूटना !
पर्वत महल या ध्वजा गिरना, कीचड में फंसना,हाथ से दर्पण का गिरकर टूटना आदि !

स्वप्न फल
१.अनाज भरना ---------------------------------------------------------- धन लाभ
२.अंगूठी पाना ----------------------------------------------------------- परेशानी
३.आग देखना-------------------------------------------------------------- धन हानि
४.इमारत बनाना----------------------------------------------------------- लाभ
५.ऊंचाई से गिरना----------------------------------------------------------- अपमान
६.कुत्ते का काटना------------------------------------------------------------ शत्रु वृध्दि
७.गाय देख्नना----------------------------------------------------------------- परेशानी
८.घोडा देख्नना --------------------------------------------------------------- स्त्री लाभ
९.चित्र देख्नना ---------------------------------------------------------------- राजसम्मान
१०.चीखें मारना -------------------------------------------------------------- संकट
११.बन्दर देखना----------------------------------------------------------------- धन लाभ
१२.बादल देखना --------------------------------------------------------------- लाभ
१३.बारात देखना---------------------------------------------------------------- रोग
१४.बारिश देखना----------------------------------------------------------------- चिन्ता
१५.बिल्ली देखना --------------------------------------------------------------- तरक्की पाना
१६.आभूषण की चोरी ----------------------------------------------------------- सफ़र
१७.मन्दिर में जाना ----------------------------------------------------------- कार्य पूरा होना
१८.मदिरा पीना -------------------------------------------------------------- कष्ट पाना
१९.चांदी देखना -------------------------------------------------------------- धन पाना
२०.जहाज देखना --------------------------------------------------------------- राज्य लाभ
२१.जहाज पर चढना ------------------------------------------------------------ तबादला
२२.तख्त देखना --------------------------------------------------------------- उन्नति
२३.झाडू देखना ----------------------------------------------------------------- खर्च
२४.तख्त पर बैठना -------------------------------------------------------------- आदर पाना
२५.तालाब स्नान ----------------------------------------------------------------- इज्जत पाना
२६.दही खाना --------------------------------------------------------------------- यात्रा
२७.दूध पीना ---------------------------------------------------------------------खुशी पाना
२८.देव प्रतिमा देखना ---------------------------------------------------------------धन लाभ
२९.नदी स्नान ------------------------------------------------------------------- रोग दूर होना
३०.ऊंचाई पर चढना --------------------------------------------------------------- शुभ लाभ
३१.हरे वॄक्ष देखना ----------------------------------------------------------------- शुभ लाभ
३२.वॄक्ष पर चढना ----------------------------------------------------------------- सफलता पाना
३३.सोना पाना ---------------------------------------------------------------------- परेशानी
३४.हाथी पर सवारी ----------------------------------------------------------------- लाभ
३५.रोटी खाना ------------------------------------------------------------------- सुसमाचार
३६.फल वाले वृक्ष देखना------------------------------------------------------------ शुभ
३७.पानी में डूबना ----------------------------------------------------------------- कष्ट पाना
३८.हाथी पर सवारी --------------------------------------------------------------- लाभ होना
३९.मॄत्यु होना ------------------------------------------------------------------- दीर्घायु होना

उपरोक्त स्वप्न व उनके अशुभ फल सम्बन्धी निवारण भी हमारे पोराणिक दर्शन शास्त्रों मे उपलब्ध है ! माता-पिता,व गुरु,ब्राह्मणो का पूजन करने से अशुभ स्वप्नो का निराकरण होता है! सूर्योदय के समय गायत्री मन्त्र का जाप करने से व अपने ईष्ट का ध्यान करने से सभी अशुभ स्वप्नों के फल दूर होते हैं! फिर सबसे बडा निराकरण तो नि:स्वार्थभाव से सत्कर्म करते जाना है! सभी परेशानियां स्वयं ही दूर हो जायेंगी !

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

अनार के औषधीय प्रयोग----



१-मीठे अनार के पत्तो को व गुलाब के पत्तो को सुखाकर पीस लें;उसके चूर्ण से मंजन करने से दांतों से खून निकलना व मसूडे सम्बन्धी सभी कार के रोग ठीक होते है!

२-अनार की कोमल कली जो हवा के झोको से नीचे गिर जाती है; उसका रस एक दो बूंद नाक में टपकाने से या सूंघने से नाक से खून बहना बन्द हो जाता है!

३-अनार के २५ग्राम पत्तो को ४००ग्राम पानी मे १००ग्राम पानी रह जाने तक उबालें; इस पानी से कुल्ला करने से मुंह के छाले व मुंह के रोग दूर होते हैं!

४-खांसी होने पर अनार के छिलके का रस चूसने से खांसी दूर होती है व गले की खरास दूर होती है!

५-दस्त(लूज मोशन) होने पर अनार का रस दिन में दो तीन बार थोडा -थोडा कर पीयें; लाभ होगा!

६-अनार का रस पीने से पेट के कीडे नष्ट होते है!

७-अनार के पत्तो को पानी मे पीस कर सिर में कुछ दिन लगातार लेप करने से गंजापन दूर होता है!

८-अनार रक्त को बढाने वाला है इसका रस पीने से शरीर में रक्त व आयरन की कमी दूर होती है!

९-अनार के दानो पर नमक व कली मिर्च मिलाकर चूसें;इससे पेट में होने वाला दर्द दूर हो जाता है;यदि सुबह के वक्त इसे लेते है तो भूख व पाचन शक्ति बढती है!

१०-अनार के छिलको का सूखा पाउडर बनाकर गुलाब जल में मिलाकर चेहरे में इसका उबटन लगाने से चेहरा दाग रहित हो जाता है१

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

मोटापा कम करने के कुछ घरेलू उपाय -


  1. तुलसी के पत्तो का रस १० बूंद व दो चम्मच शहद एक ग्लास पानी मे मिलाकर कुछ दिन पीने से मोटापा कम होता है !
  2. नीबू का रस १५ ग्राम;व १५ग्राम शहद; १२५ ग्राम गरम पानी मे मिलाकर सुबह खाली पेट २ या ३ महीने तक लगातार पीये मोटापा कम होगा !
  3. तली -भुनी व मैदे से बनी चीजे न खाये ! ताजी सब्जियां व ताजे फल लें !
  4. अधिक मीठा व अधिक नमक न लें ; नमक व मीठा दोनों एकदम बन्द कर देने से मोटापा तीव्रता से कम होता है !
  5. रात को सोने से पहले कम से कम २ घन्टा पहले डिनर करें !
  6. खाने के बाद एक कप तेज गरम पानी घूंट लेकर पीये ;मोटापा कम होगा!
  7. खान- पान मे नियंत्रण रखें;पैदल घूमने जायें व साइकिलिंग करें! मोटापा घटाने वाले आसन करने से विशेष लाभ होता है जैसे-उत्तानपदासन;हलासन;धनुरासन;भुजंगासन;सूर्य नमस्कार आदि !सूर्य नमस्कार एक पूर्ण व्यायाम है जो शरीर के सभी अंगो को स्वस्थ रखता है व मोटापा कम करता है !
  8. एक कप गाजर के रस में एक चौथाई कप पालक का रस मिलाकर पीयें’;एक या दो महीने तक लगातार पीने से लाभ होगा !
  9. दही का सेवन करने से शरीर की फ़ालतू चर्बी कम होती है;अत:दूध के बजाय दही या मट्ठे का सेवन करें !
  10. नित्य प्रात:प्राणायाम या व्यायाम करें;प्राणायाम करने से शरीर का मैटाबलिजम सिस्टम ठीक होता है !
  11. अनामिका अंगुली के टौप भाग पर अंगूठे से दबाकर कम से कम ५ मिनट तक एक्यूप्रेशर करे;दिन में दो या तीन बार ऐसा कर सकते हैं! शरीर का वेट सन्तुलित रहेगा !

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

निरोग रहने के कुछ उपयोगी सूत्र ---

कहा गया है ---"पहला सुख निरोगी काया" जब हम कुदरत से दूर हो जाते है तो अनेक प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाते है !खूबसूरती और उत्तम स्वास्थ तो कुदरत की देन है! कुदरती देखभाल करके ही हम ताउम्र निरोग रह सकते है! अच्छे स्वास्थ के लिये कुदरत को जाने व पहचाने!


  1. सुबह प्रतिदिन नंगे पैर घास मे चलने से नेत्र ज्योती बदती है व उच्च रक्तचाप की शिकायत नही रहती!
  2. एक कप पानी मे आधा चम्म्च सैधा नमक मिलाकर प्रतिदिन सोने से पहले कुल्ला करने से दांतो के हर प्रकार के रोगो से बचाव होता है !
  3. प्रतिदिन सुबह जल्दी उठे व रात को जल्दी सोने की आदत डाले !सुबह उठकर पहले कम से कम एक गिलास गुनगुना पानी पीये !
  4. पेट मे कब्ज होने पर दिन मे कई बार गरम पानी पीये व अपनी पिन्डलियो को दबाये; हमारी पिन्डलियो का सम्बन्ध सीधे हमारे पेट से है !
  5. शरीर का भार सन्तुलित करने के लिये अपनी अनामिका अंगुली के अग्र भाग को प्रतिदिन कम से कम बीस मिनट दबाकर एक्यूप्रेशर करे !
  6. प्रतिदिन सुबह उठकर अपने मुंह मे पानी भरकर दोनो हाथो से आखों को पानी से धोये ;आंखो की रोशनी तेज होगी ऐसा दिन मे तीन चार बार करे !
  7. यदि पैरो मे अधिक पसीना आता हो तो पहले पैरो को गरम पानी मे रखे ;फिर ठंडे पानी मे रखे और दोनो पैरो को आपस मे रगडे फिर बाहर निकालकर पोछ ले! एक सप्ताह तक लगातार ऐसा करने से बहुत लाभ होगा !

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

सुन्दर बालो के लिये कुछ उपयोगी नुस्खे ------


  1. नीबू के रस मे पिसा हुआ सूखा आवला मिलाकर सफ़ेद बालो मे लेप करने से बाल काले होते है , इससे बालो के अन्य रोग भी दूर होते है!
  2. सिर धोने से आधा घन्टा पहले सिर मे नीबू व नारियल का तेल मिलाकर मलिश करने सेब बाल गिरने बन्द होते है व रूसी भी दूर होती है !
  3. सिर पर से कही बालो का चकत्ता उड गया हो तो वहा रोज एक माह तक नीबू रगडते रहे ऐसा करने से बाल उग आयेगे !
  4. यदि बाल तेलीय है तो बालो को नीबू डले पानी से धोये !
  5. आवले का रस रोज दो चम्मच पीने से कब्ज दूर होतीहै , बाल गिरने बन्द होते है व नेत्र ज्योति बढती है !
  6. बालो की जडो मे सिर धोने से बीस मिनट पहले दही लगा ले व फिर सिर धो ले बाल स्वस्थ रहेगे!
  7. यदि बाल गिरते हो तो या सिर मे रूसी हो , तिल या सरसो के तेल अथवा नारियल तेल मे नीबू का रस मिलाकर सिर की मलिश करने के पश्चात एक तौलिया गरम पानी मे भिगोकर बालो पर भाप लेलै ऐसा २-३ बार करे , फिर बीस मिनट बाद सिर धो ले ! तीन-चार बार १-१ सप्ताह के अन्तराल मे करने से बाल गिरने बन्द हो जायेगे और रूसी भी दूर हो जायेगी !
  8. दोनो हाथो के नाखूनो को "अंगूठे को छोडकर" प्रतिदिन खाली पेट ५ मिनट तक कम से कम रगडे , इससे सिर के बाल गिरने बन्द होगे तथा काले भी होगे !

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

स्वास्थ्य बर्धक नुस्खे ..

www.blogvarta.com
ऊँ
आज हम २१ वी शताब्दी मैं जी रहे है,भाग दौड भरी जिन्दगी व व्यस्ततम जीवन है। आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त जीवन शैली के कारण हमारे शरीर पर अनेको रोगों ने घर कर लिया है .आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं ने हमेंरोगों से तुरंत रहत तो दी है ,परन्तु वह अस्थाई है स्थाई उपचार तो योग एवं आयुर्विज्ञान से ही संभव है .योग एवम आयुर्वेद से उपचार व् स्वस्थ जन समुदाय की कल्पना की है सोचा जन-जन मे स्वास्थ की चेतना जगे और उपचार हो हमारी घरेलू जडी बूटी द्वारा.
निरोग रह्ऩे के लिये कुछ उपयॊगी सूत्र -----------

१ स्नान करने से पहले हमेशा ५ मिनट तक मस्तक के मध्य तलुवे पर किसी भी उत्तम तेल से मलिश करे इससे स्मरण शक्ति के विकास होत है. बाल काले चमकीले और मुलायम होते है, सिर दर्द से मुक्ति मिलती है.
२. सिर्फ़ पैर के तलुओ कि मालिश करने से नज़र तेज होती है, पैरो मे शक्ति आ जाती है , साइटिका रोग नही होता
३. अच्छे पाचन के लिये भोजन के एक घन्टे बाद पानी पीये.
४.चेहरे के दाग धब्बे व झाईया दूर करने के लिये रोज़ एलोवीरा का रस चेहरे पर लगाये.