मंगलवार, 2 मार्च 2010

महामॄत्युंजय मंत्र

ओम त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं, उर्वारुकमिव बन्ध्नानमॄत्योर्मुक्षीय मामॄतात !

इस एक महामॄत्युंजय मंत्र में हमारे पूरे शरीर को आरोग्य देने चमत्करिक अक्षर छुपे हुये हैं !महामृत्युंजय मंत्र मे ३३अक्षर हैं, जो महर्षि वसिष्ट के अनुसार ३३ दिव्य शक्तियों के समान हैं ! वैज्ञानिक शोध के अनुसार पाया गया है कि इसके मंत्र जाप में रोग निवारण की अपार शक्ति निहित है! मंत्र जप साधना एक ऐसी पद्यति है, जिसके कोई साइड इफैक्ट नहीं हैं !यह योग के क्षेत्र में सबसे सरल और प्रभावपूर्ण साधना है!

महामृत्युंजय मंत्र की संरचना में विभिन्न शक्ति बीजों को पिरोया गया है, इसके मंत्र जप में जिव्हा के साथ -साथ कंठ, तालु, , दांत आदि मुंह के सभी अंग सहायक होते हैं! महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करने से मुंह के जिन-जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाडी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों में फैल जाते हैं! इस फैलाव क्षेत्र में हमारे शरीर में फैली अनेक ग्रंथियां होती हैं, जिन पर उच्चारण का दबाब पडता है ,जिससे शरीर के आठों सिस्टम बैलेंस हो जाते हैं!

हमारे शरीर में स्थित शक्तियों का जाग्रत व सबल रहना ही जीवन है, तथा उनका निर्बल व सुप्त रहना ही मृत्यु है ! महामृत्युंजय मंत्र के जाप से मंत्र में आये हुये वर्ण शरीर में स्थित विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करते हैं ! अत: मंत्र जाप से जाग्रत होकर विभिन्न शक्तियां तन व मन को सबल बनाती हैं !

एकाग्रता, दृढ विश्वास व दिव्य पवित्र भाव से की गयी जप साधना सदैव लाभकारी होती है !

2 टिप्‍पणियां:

jitenderpanwar90@gmail.com ने कहा…

well Aunty jii ...mantar to thik hai but iska prounchastaion kasa hoga ye bat dete aap!!!

jitenderpanwar90@gmail.com ने कहा…

but How I pronounce it........ye ek problm hai aunty jii