वही वक्त लौटा लाएं
साँझ दस्तक दे रही, आओ अब लौट चलें।
इतना आसां तो नहीं सफर में फिर मुड़ जाना ,
तूफानों से बचना होगा ,
इतना आसां तो नहीं सफर में फिर मुड़ जाना ,
तूफानों से बचना होगा ,
तेरी बेवफाइओं का चर्चा आम हो गया ,
सुना है शहर में इश्क का, फिर कत्लेआम हो गया।
दागे दिल नजर तो नहीं आता ,
धूमिल नजरों को देखना अब आसान हो गया।
हाँ ये चर्चा अब आम हो गया।।
आ रही है हाले दिल पर हँसी ,
क्यों वफाओं का काम तमाम हो गया।
हाँ ये चर्चा अब आम हो गया ।।
ये शहर तो रौशनी के लिए मशहूर हुआ करता था ,
क्यों अँधेरे खंडहरों से बदनाम हो गया।
हाँ ये चर्चा अब आम हो गया।।
सूनी आँखों में अब सपने नहीं जगते ,
अश्कों के सैलाब में कश्ती भी नजर नहीं आती,
दर्द एक संगदिल तूफ़ान हो गया।
हाँ ये चर्चा अब आम हो गया ।।
तुम बिन कोई न भाया इस मन को।
चाह तुम्ही ,आरजू तुम्ही,
नैनों की मूक भाषा में ,मधुर बसे संसार तुम्ही।
मैंने हर लम्हे में बस सजो दिया तेरी यादों को।
तुम बिन कोई ना भाया इस मन को
अर्पण, समर्पण की परिभाषाएं ,
तुम पर खतम तुमसे शुरू।
अपने क़दमों की आहट से,
सुरभित कर दो इस जीवन को।
तुम बिन कोई न भाया इस मन को।
हमने तेरे शहर में आकर,खुद की महफ़िल सजा ली।
अरमानों की डोली चढ़ ,एक नई दुनियां बसा ली।
तेरे इश्क के शहर में , आकर डूब गए
चढ़ गए की शूली, बावरेपन में ,
मौत से पहले अपनी अर्थी सजा ली।
प्यार कोई बेबसी तो नहीं ,
मेरे इश्क की मासूमियत ही थी
पर लाजबाब हो तुम ,
हमें बेसब्र तन्हाई देकर,
हर रोज एक नई बारात सजा ली।
नाजायज तमन्नाओं को दी बेमिशाल ऊंचाई ,
मेरी हशरतों का तो कोई नाम न था।
तुमसे मांगा था सिर्फ तुम्हीं को ,
नैनों की बरसात मेरे नाम कर दी।
जी में आता है
दिल में भरे दर्द की
बस एक" चिलम" सुलगाऊं
एक तेज" कश भर कर"
गोल छल्लों. में उडाऊं
रीते मन की व्यथा
धुएं में खो जाए
आँखों में उतरे सावन से
एक घटा बरस जाए
और सुलगे हुए लम्हों को
कहीं ठंडक मिल पाए
****************
सूनी आँखों में अब सपने नहीं जगते ,
अश्कों के सैलाब में कश्ती भी नजर नहीं आती,
दर्द एक संगदिल तूफ़ान हो गया।
हाँ ये चर्चा अब आम हो गया ।।
तुम बिन कोई न भाया इस मन को।
चाह तुम्ही ,आरजू तुम्ही,
नैनों की मूक भाषा में ,मधुर बसे संसार तुम्ही।
मैंने हर लम्हे में बस सजो दिया तेरी यादों को।
तुम बिन कोई ना भाया इस मन को
अर्पण, समर्पण की परिभाषाएं ,
तुम पर खतम तुमसे शुरू।
अपने क़दमों की आहट से,
सुरभित कर दो इस जीवन को।
तुम बिन कोई न भाया इस मन को।
हमने तेरे शहर में आकर,खुद की महफ़िल सजा ली।
अरमानों की डोली चढ़ ,एक नई दुनियां बसा ली।
तेरे इश्क के शहर में , आकर डूब गए
चढ़ गए की शूली, बावरेपन में ,
मौत से पहले अपनी अर्थी सजा ली।
प्यार कोई बेबसी तो नहीं ,
मेरे इश्क की मासूमियत ही थी
पर लाजबाब हो तुम ,
हमें बेसब्र तन्हाई देकर,
हर रोज एक नई बारात सजा ली।
नाजायज तमन्नाओं को दी बेमिशाल ऊंचाई ,
मेरी हशरतों का तो कोई नाम न था।
तुमसे मांगा था सिर्फ तुम्हीं को ,
नैनों की बरसात मेरे नाम कर दी।
जी में आता है
दिल में भरे दर्द की
बस एक" चिलम" सुलगाऊं
एक तेज" कश भर कर"
गोल छल्लों. में उडाऊं
रीते मन की व्यथा
धुएं में खो जाए
आँखों में उतरे सावन से
एक घटा बरस जाए
और सुलगे हुए लम्हों को
कहीं ठंडक मिल पाए
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