गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

उत्तम स्वास्थ का आधार "प्राणायाम"

स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है! यदि शरीर रोग ग्रस्त है तो सुख शान्ति और आनन्द वैभव आदि कहां ? भले ही धन सम्पदा, कीर्ति सब कुछ प्राप्त है पर यदि तन स्वस्थ नही है तो यह मानव शरीर बोझ सा ही प्रतीत होता है ! हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों व सिद्ध योगियों ने यौगिक प्रक्रिया का आविष्कार किया है ! योग प्रक्रियाओं के अन्तर्गत प्राणायाम का एक अति विशिष्ट महत्व है ! यूं कह लीजिये कि प्राणायाम आत्म चिकित्सा व आत्म औषधि है ! प्राणायाम द्वारा हम शक्ति का संचय व विकारों का क्षय करते हैं !
श्वास प्रश्वास हमारे जीवन का आधार है !श्वास प्रश्वास की गति को लय बद्ध करना ही प्राणायाम है ! प्राणायाम करना केवल सांस लेना व छोडना ही नही होता, अपितु वायु के साथ-साथ हम वायु मन्डल में विद्यमान प्राण शक्ति व जीवनी शक्ति भी ग्रहण करते हैं ! यह जीवनी शक्ति सर्वत्र व सदा विद्यमान रहती है, जिसे हम ईश्वर, खुदा, गौड आदि अपनी आस्था के अनुरूप कुछ भी नाम दे देते हैं ! उस एक परम शक्ति से जुडना व जुडे रहने का अभ्यास ही प्रायाणाम है !
प्राणायाम को व्यायाम की तरह देखना तथा एक विशेष वर्ग की पूजा पाठ से जोडकर देखना अज्ञानता है ! अज्ञान से ऊपर उठकर हमें इसे एक सम्पूर्ण विज्ञान की तरह देखना चाहिये ! योग की पौणाणिक मान्यता है कि इससे अष्ट चक्र जाग्रत हो जाते हैं ! प्राचीन सांस्कृतिक इन शब्दों का यदि मूल्यांकन करते हैं तो ज्ञात होता है कि मूलाधार, स्वाधिष्टान, मणिपूर, ह्रदय, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञाचक्र व सहस्त्रार चक्र आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के आठों सिस्टमों से सम्बद्ध हैं !

मूलाधार चक्र Reproductory system

स्वाधिष्ठान चक्र Excretory system

मणिपूर चक्र digestive system

ह्रदय चक्र Skeleal system

अनाहत चक्र Circulatory system


विशुद्धि चक्र Respiratory system

आज्ञा चक्र Nervouse system

सहस्त्रार चक्र Endocrinal system


एक -एक सिस्टम या चक्र के असन्तुलन से शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है ! योग एलोपैथी की तरह एक "पिजन होल ट्रीटमैन्ट " न होकर आरोग्य की एक सम्पूर्ण विधा है! आपात कालीन चिकित्सा शल्य चिकित्सा को छोड कर शेष चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में योग एक श्रेष्टतम चिकित्सा विधा है ! योग के साथ-साथ कुछ जटिल रोगों में आयुर्वेद का भी प्रयोग अधिक प्रभावी हो जाता है ! अत: प्रतिदिन २४ घंटे में से आधे धंटे से लेकर ( अपनी सुविधा व रोग की गम्भीरता के अनुसार ) डेढ घंटे तक का समय योग व प्राणायाम के लिये निकाल कर हम स्वस्थ, सुन्दर व निरोगी काया के अधिपति हो सकते हैं !
प्राणायाम का समय ----
बच्चे तीन वर्ष की आयु से लेकर व वृद्ध व्यक्ति अन्तिम सांस तक प्राणायाम कर सकते हैं ! एक स्वस्थ व्यक्ति को २ से ५ मिनट तक भस्त्रिका प्राणायाम व १०-१० मिनट तक कपालभाति व अनुलोम -विलोम प्राणायाम आजीवन स्वस्थ बने रहने के लिये अवश्य करना चाहिये !
प्राणायाम की महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं-----
यद्यपि शास्त्रों मे प्राणायाम की विभिन्न विधियां हैं, और प्रत्येक प्राणायाम का अपना विशेष महत्व है ! परन्तु प्रतिदिन हर प्राणायाम का अभ्यास नहीं किया जा सकता अत: पतन्जलि योग पीठ हरिद्वार के संथापक योग ॠषि स्वामी रामदेव जी के द्वारा कुछ चुनींदा प्राणायामों का अभ्यास कराया जाता है, जिनसे करोडों लोगों को अप्रत्याशित रूप से लाभ हुआ है ! जो निम्न हैं -
१- भस्त्रिका प्राणायाम--
इस प्राणायाम का समय २ मिनट से लेकर ५ मिनट तक है ! जो दमा, अस्थमा, एलर्जी आदि किसी रोग विशेष से पीडित हैं वह इस प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन १० मिनट तक करें !
विधि --
सर्व प्रथम किसी भी प्राणायाम को करने के लिये, जहां भी बैठकर प्राणायाम करना है उस स्थान पर आसन बिछा लें जिससे कि अर्थिग न हो पाये ! फिर सुखासन,(पालथी मारकर) सिद्धासन, या पद्मासन किसी भी आसन विशेष में , जिसमें बैठकर सुविधा हो प्रत्येक प्राणायाम के लिये बैठें !
भस्त्रिका प्राणायाम में लम्बा और गहरा श्वास लें, और फिर गहरा श्वास छोडें ! श्वास भरते समय ध्यान करें कि इस ब्रह्मांड में जो भी दिव्य ,शुभ, और पवित्र है वह श्वासों के साथ मुझमें प्रविष्ठ हो रहा है ! श्वास छोडते समय मन में भाव रखें कि हर बाहर छूटती श्वास के साथ हम अपने शरीर के सभी विकारों को बाहर छोड रहे हैं !
२- कपालभाति प्राणायाम --
इस प्राणायाम को एक बार में लगातार कम से कम ५ मिनट तक अवश्य करना चाहिये ! यदि विश्राम लेना हो तो ५ मिनट बाद ही लें अधिक फायदा होगा ! स्वस्थ व्यक्ति प्रति-दिन १० से १५ मिनट तक कपालभाति प्राणायाम कर सकते हैं ! जो गम्भीर रोगी हैं या किसी रोग विशेष से पीडित हैं वह इसे आधा-आधा घन्टा सुबह व शाम दोनों टाइम कर सकते हैं !
विधि--
नाभि के पास से पेट से गहरा धक्का लगाकर श्वासों को बाहर छोडेंगे, पूरा ध्यान श्वासों को बाहर छोडने में ही केन्द्रित करेंगे ! श्वास भरने का प्रयत्न नहीं करेंगे अपितु सहज रूप से जो श्वास अन्दर जाता है वही काफी है! इस तरह नाभि के पास से १ सेकेन्ड मे एक स्ट्रोक लगायेगे ! मन ही मन ओम शब्द का जाप या अपने इष्ट का ध्यान करेंगे ! कपालभाति प्राणायाम को करने से कैंसर, हिपैटाइटिस, सोराइसिस, इम्फर्टिलिटि, अत्यधिक मोटापा व पेट सम्बन्धी सभी रोग या शरीर में कोई गांठ हो गई हो, दूर हो जाते हैं !
बाह्य प्राणायाम --
प्रतिदिन स्वस्थ व्यक्ति को ३ से ५ बार तक इस प्राणायाम को करना चाहिये! पाइल्स, फिशर, फ्रिस्टूला, बहुमूत्र व यूट्रस सम्बन्धी रोग विशेष से पीडित व्यक्ति बाह्य प्राणायाम को ११ बार तक भी कर सकते हैं !
विधि --
किसी भी आसन विशेष में बैठकरश्वास को एक बार में ही यथा - शक्ति बाहर निकाल लें ,इसके पश्चात मूल बन्ध, उड्डियान बन्ध, व जालन्दर बन्ध लगाकर श्वास को यथा -शक्ति बाहर ही रोक कर ही रखें व फिर धीरे -ध्रीरे बन्धों को हटाकर श्वास लेलें !
४- उज्जायी प्राणायाम --
इस प्राणायाम में गले को सिकोडकर श्वास अन्दर भरते हैं जैसे खर्राटे लेते समय आवाज होती है, वैसी ही ध्वनि पूरक करते समय गले से होती है ! वायु का धर्षण नाक में न होकर गले में होना चाहिये ! इसके पश्चात ठोडी को कंठ कूप (गले) से लगाकर कुछ देर श्वास को रोकेंगे (यथा-शक्ति) इसके बाद दांई नासिका को बन्द कर बांई नासिका से श्वास को बाहर छोड देते हैं !
उज्जायी प्राणायाम को करने से थाइराइड, खांसी, टोंसिल व गले सम्बन्धी सभी रोग दूर होते हैं ! इस प्राणायाम को ४-५ बार तक कर सकते हैं !
५-अनुलोम विलोम प्राणायाम --
इस प्राणायाम को भी कम से कम एक बार में ५ मिनट तक लगातार अवश्य करना चाहिये, यदि विश्राम करना हो तो ५ मिनट पश्चात ही करें! स्वस्थ व्यक्ति १० मिनट प्रतिदिन व किसी रोग विशेष से पीडित या गम्भीर रोगी आधा -आधा घंटा सुबह व शाम दोनों समय कर सकते हैं ! अनुलोम विलोम प्राणायाम को करने से हमारे शरीर में स्थित बहत्तर करोड बहत्तर लाख दस हजार दो सौ दस नस नाडियां परिशुद्ध हो जाती हैं ! फलस्वरूप सम्पूर्ण शरीर आरोग्य को प्राप्त होता है ! कपालभाति प्राणायाम के साथ अनुलोम विलोम प्राणायाम को आधा-आधा घंटा सुबह व शाम को दोनों समय करने से कैंसर जैसा गम्भीर रोग भी दूर होता देखा गया है ! दोनों प्राणायामो को करने से असाध्य रोग आश्चर्य जनक रूप से ठीक होते हैं !
अर्थराइटिस, गठिया, कम्पवात, सोराइसिस, अस्थमा, पुराना नजला, ह्रदय सम्बन्धी सभी रोग व डिप्रैशन आदि अनेक रोग अनुलोम विलोम से ठीक होते हैं !
विधि --
सर्वप्रथम किसी भी आसन विशेष में बैठकर दाई नासिका को बन्द कर बांई नासिका से श्वास लें व दांई से छोड दें, फिर दांई से ही श्वास लेकर बांई से छोड दें, छोडने के पश्चात फिर बांई से ही पुन: श्वास लें ! इस प्रकार यह क्रम चलता रहेगा ! लगभग ढाई सैकेंड का समय श्वास को लेने में लगायेंगे व ढाई सैकेंड का ही समय श्वास को छोडने मे लगायेंगे, लम्बा व गहरा श्वास लेते व छोडते समय मन ही मन ओम का या अपने ईष्ट का ध्यान करेंगे तथा मन में सकारात्मक भाव रखेंगे कि हर श्वास प्र:श्वास के साथ हम पूर्ण आरोग्य को प्राप्त हो रहे हैं !
भ्रामरी प्राणायाम --
इस प्राणायाम को स्वस्थ व्यक्ति को तीन से पांच बार प्रतिदिन करना चाहिये ! जो डिप्रैशन, उच्च रक्तचाप या ह्रदय रोग आदि से पीडित हैं ,वह इसे ११ बार तक कर सकते हैं!
विधि--
किसी भी एक आसन विशेष में बैठकर तर्जनी अंगुली माथे पर लगायें, अंगूठे से कानों को बन्द करें, शेष तीन अंगुलिओं से आंखों को बन्द करेंगे ! फिर लम्बा व गहरा श्वास लें, श्वास को छोडते हुये मुंह बन्द करके ओम की ध्वनि ( भोंरे की तरह गुंजार करते हुये ) करेंगे ! पुन: इसी प्रकार इस प्रक्रिया को दोहरायेंगे !
उदगीत प्राणायाम --
सर्वप्रथम किसी भी आसन विशेष में बैठें, तर्जनी अंगुली को अंगूठे से लगाकर ज्ञान मुद्रा में बैठकर लम्बा व गहरा श्वास लें, फिर श्वास को छोडते हुये ओम का उच्चारण करेंगे ! यही प्रक्रिया पुन: दोहरायेंगे ! इस प्राणायाम को तीन बार से लेकर लम्बे समय तक कर सकते हैं ! भ्रामरी व उदगीत दोनों प्राणायाम सौम्य प्राणायाम हैं, ध्यान की गहराई में उतरने के इच्छुक लोग लम्बा अभ्यास कर सकते है ! जो कि नुकसान रहित है !
इस प्राणायाम को करने से मन की चंचलता दूर होती है व मानसिक तनाव उत्तेजना, ह्रदय रोग आदि में लाभप्रद हैं !
प्रणव प्राणायाम --
सभी प्राणायामो को करने के बाद श्वास - प्रश्वास पर अपने मन को टिकाकर मन ही मन ओम का घ्यान करें, या अपने ईष्ट का ध्यान करें ! कुछ समय तक साक्षी भावपूर्वक ओम का जप करने से ध्यान स्वत: होने लगता है ! प्रणव के साथ -साथ गायत्री महामंत्र का भी जाप किया जा सकता है ! इस प्रकार साधक ध्यान करते -करते दिव्य समाधि व दिव्य आनन्द को प्राप्त कर सकता है ! जिन्हे नींद न आती हो उन्हें सोते समय भी लेटे - लेटे इसी प्रकार ध्यान करते हुये सोना चाहिये ! ऐसा करने से निद्रा भी योग मयी हो जाती है व दु:स्वप्न से भी छुटकारा मिलता है तथा निद्रा शीघ्र व प्रगाढ आयेगी ! तीन से पांच मिनट तक प्रत्येक मनुष्य को ध्यान अवश्य करना चाहिये जिससे साधक सैल्फ हीलिंग व सैल्फ रियलाइजेशन की स्थिति को प्राप्त कर लेता है ! उसके चारों ओर एक दिव्य आभा मंडल सुरक्षा कवच की भांति तैयार हो जाता है, फलस्वरूप हमारा शरीर अनेकों व्याधियों व विकारों से बचा रहता है !
इस प्रकार आठों प्रणायामों की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, जो प्रत्येक मनुष्य के उत्तम स्वस्थ के लिये आवश्यक है ! यदि समय की कमी हो तो ऐसे मे कपालभाति व अनुलोम विलोम प्राणयाम अवश्य करें ! प्रारम्भ में किसी योग शिक्षक की देखरेख में ही प्राणायाम करें या टी वी पर आस्था चैनल, दूरदर्शन, इन्डिया टी वी आदि पर भी सुबह योग का प्रोग्राम आता है ! कुछ समय उसे देखते हुये अभ्यास कर सकते हैं ! आप स्वयं प्राणायाम करते हुये अपने आस -पास के लोगों को भी प्राणायाम करने के लिये प्रेरित करें ! इस प्रकार हम सभी के सहयोग से एक स्वस्थ समाज व देश का र्निमाण हो सकेगा, तभी ’सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया ’ का भाव सार्थक हो पायेगा !

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

अजवाइन के औषधीय प्रयोग --------







औषधि के रूप में अजवाइन का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है! पाचक औषधि के रूप में इसका अन्यत्र विकल्प दुर्लभ है !

अजवान में चिरायते का कटु व पौष्टिक गुण, हींग का वायु नाशक गुण व काली मिर्च का अग्नि दीपन गुण है! इसी कारण कहा जाता है----"
एका यवानी शतमअन्नपातिका " अर्थात- एक अकेली अजवाइन ही सैकडों प्रकार के अन्न को पचाने में सहायक है !इसके कुछ औषधीय गुण निम्न हैं --

१- दो सौ ग्राम के आसपास मात्रा में अजवाइन को तवे पर गरम करके मलमल के कपडे में बांधकर पोटली बना लें, इसे गरम-गरम सूंघने से जुकाम कम हो जाता है ! या अजवाइन को महीन कर पीस करके दो से पांच ग्राम की मात्रा तक सूंघने से जुकाम, सिर दर्द आदि में लाभ होता है !

२- अजवाइन के चूर्ण की २ से ३ ग्राम मात्रा को गरम पानी या गरम दूध के साथ दिन में दो या तीन बार लेने से जुकाम, सिर दर्द, नजला ,मस्तक शूल व मस्तक कृमि में लाभ होता है !

३- खासी होने पर ५ ग्राम अजवाइन को २५० ग्राम पानी में पकायें आधा शेष रहने पर सैधा नमक मिलाकर रत्रि को सोने से पहले पी लें, लाभ होगा !
४- यदि दूध ठीक से न पचता हो तो दूध पीकर थोडी सी अजवाइन खा लेनी चाहिये ! यदि गेहूं का आटा न पचता हो तो उसमें थोडी सा अजवाइन का चूर्ण मिला लेना चाहिये !

५- शरीर में कहीं भी दर्द होने पर अजवाइन को पानी में पीस कर लेप करें, और फिर उसे धीरे-धीरे उपर से सेक दें, दर्द कम होगा !

६-स्वच्छ अजवाइन के महीन चूर्ण को ३ ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार छाछ के साथ सेवन करने से पेट के कीडे समाप्त हो जाते हैं !

७- पेट दर्द होने पर ३ ग्राम अजवाइन चूर्ण गरम पानी से प्रात: व सायं दोनों टाइम लें !

८- ३ ग्राम अजवाइन मे आधा ग्राम काला नमक मिलाकर गरम पानी के साथ दिन में दो या तीन बार लेने से वायु का गोला दूर होता है !

९- भोजन के बाद यदि छाती में जलन होती हो तो एक ग्राम अजवाइन व एक गिरी बादाम की खूब चबाकर खायें !

१०- प्रसूता स्त्रियों को अजवाइन के लड्डू व भोजन के बाद दो ग्राम अजवाइन की फंकी देनी चाहिये, इससे भूख अच्छी लगती है, आतों के कीडे मरते हैं व रोगों से बचाव होता है !

११- २ ग्राम अजवाइन को २ ग्राम गुड के साथ कूट कर ४ गोली बना लें व तीन -तीन घंटे के बाद पानी से ले लें ,इससे बहुमूत्र रोग दूर होता है !

१२- यदि बच्चों के पैर में कांटा चुभ जाये तो कांटा चुभने के स्थान पर पिघले हुये गुड मे १० ग्राम पिसी हुई अजवाइन मिलाकर थोडा गरम कर बांध देने से कांटा अपने आप निकल जायेगा !